लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए एकाग्र होना ज़रूरी है
हम सब अपने जीवन में कुछ पाने का, कुछ बनने का लक्ष्य बनाते हैं पर क्यों हम उसे पूरा नहीं कर पाते? आखिर क्यों, हम अपने लक्ष्य से भटक जाते हैं? लक्ष्य हासिल करने में हमारा निशाना क्यों चुक जाता हैं? इन सभी सवालों का एक ही जवाब हैं, मन की चंचलता, जो हमे एकाग्र होकर कुछ करने से रोकती हैं।
अर्जुन ने इस तरह सीखा धनुष चलाना
महाभारत में द्रोणाचार्य के प्रिय शिष्य अर्जुन ने अपने गुरु से धनुष चलाने की ऐसी विद्या सीखी, जिसका कोई सानी नहीं। धनुष कला में वो अपने सभी भाइयों से ज्यादा निपुण थे, उनका तीर कमान से निकलकर सीधा लक्ष्य को भेदता था। क्योंकि, जब वो निशाना लगाते थे तब उन्हे सिर्फ लक्ष्य ही नज़र आता था।
इसीलिए वो अपने गुरु द्रोणाचार्य के सबसे प्रिय शिष्य थे। अर्जुन अपने मन की चंचलता को स्थिर कर, उसे एकाग्र करना जानते थे। जीवन में हमारा बहुत सारा वक़्त बेकार के कामों में बर्बाद हो जाता है, क्योंकि हम अपने लक्ष्य को देख नहीं पाते।
हम सब अर्जुन की मछली की आँख पर तीर साधने की कहानी जानते हैं, उनकी आँखें सिर्फ मछली की आँख को ही एकाग्रता से देख रही थी, कुछ और नहीं। इसलिए जहाँ बड़े से बड़े धनुर्धर हार गए, वही अर्जुन का तीर सीधे मछली की आँख पर जा लगा।
हम भी अर्जुन की तरह, अपने जीवन के असली लक्ष्य को मजबूत इरादे और एकाग्रता की शक्ति से हासिल कर सकते हैं।
अर्जुन कुछ अलग नहीं थे अपने भाइयों से और दुसरे शिष्यों से। फर्क बस इतना था की वे औरों की तरह ध्यान भंग नहीं होते थे। उनकी ईक्षा शक्ति और एकाग्रता का तीर, कमान से निकलकर सीधे निशाने पर लगता था।
हम सब भी चाहे तो अर्जुन की तरह अपने निशाने यानी लक्ष्य को भेद सकते हैं। हमे भी सिर्फ मछली की आँख यानी सिर्फ अपने लक्ष्य को ही देखना हैं, कुछ और नहीं, फिर हम भी अपने लक्ष्य को हासिल कर पाएंगे।