खूबसूरती के मायने सबके लिए अलग अलग हैं
खूबसूरती के मायने सबके लिए अलग अलग होते हैं, और इसमें सब सही होते हैं। खूबसूरती की कोई एक निश्चित परिभाषा नहीं हैं, जिसने इसे जैसे समझा अपना लिया। खूबसूरती का अस्तित्व सिर्फ देखने वाले की आँखों में होता है। क्योंकि, ज़रूरी नहीं जो हमे खुबसूरत लगे वो सबको ही खुबसूरत लगे।
एक माँ के लिए उसका बच्चा सबसे खुबसूरत हैं, एक बेटे के लिए उसकी माँ। प्यार करने वालें भी खूबसूरती को अपने हिसाब से समझते हैं। दरअसल, इसका सीधा कनेक्शन आपके दिल, आपके मन, आपके अनुभव, आपकी सोच और आपके अपने व्यक्तित्व से है। अगर हमें कोई चीज़ अच्छी लगती हैं, तो इसका मतलब ये नहीं की वो वाकई में खुबसूरत हैं, देखने वाले की नज़र उसे खुबसूरत बना देती हैं।
अच्छाई आपके दिल में होती है जो आँखों से नज़र आती है
जिसका दिल अच्छा है, उसे सब अच्छा ही अच्छा लगता हैं। वही जिसका दिल अच्छा नहीं हैं, उसके लिए कुछ भी खुबसूरत नहीं। इसलिए शायद ये कहते हैं, इस दुनिया में कुछ भी अच्छा या बुरा नहीं हैं, सब अपना अपना नजरिया है बस। आप भला तो जग भला।
हम किसी को तन की आँख से तो किसी को मन की आँख से देखते हैं। तन की आँख सिर्फ बाहरी खूबसूरती तक सीमित है, वो चीज़ों को गहराई से नहीं समझती। वही मन की आँख उसे उसके गुणों, विशेषताओं और उसके उपयोगिता की गहराई से देखती हैं। इसलिए दोनों के निर्णय में फर्क हो सकता हैं।
अन्दर की खूबसूरती हमेशा जवां रहती है
सच तो यह हैं की बाहरी खूबसूरती सिर्फ बाहर तक ही रहती हैं, जब की अन्दर की खूबसूरती अन्दर तक जाती हैं, ज्यादा स्थाई होती है। बाहरी रूप, रंग वक़्त के साथ बदलते रहते हैं, लेकिन जो अन्दर की खूबसूरती हैं, वो वक़्त के साथ और निखरती जाती हैं।
ये हमारे ऊपर है की हम चीज़ों को कैसे देखते और समझते हैं, हमें पल भर की ख़ुशी चाहिए या जीवन भर का आनंद।
जैसे हर चमकती चीज़ सोना नहीं होती, वैसे ही हर खूबसूरत चीज़ अच्छी हो ये ज़रूरी नहीं। लेकिन हर अच्छी चीज़ खुबसूरत ज़रूर होती हैं। बाहरी या बनावटी खूबसूरती का सहारा लेकर अन्दर की बुराई को छुपाया जा सकता हैं। जो इसे नहीं समझते वो ठगे जाते हैं। जिसे अन्दर की खूबसूरती से वास्ता हैं वो कभी बाहरी या बनावटी खूबसूरती से छले नहीं जाते।